अतिरिक्त >> अब न होगा कोई अछूत अब न होगा कोई अछूतराजेन्द्र मोहन भटनागर
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नवसाक्षरों व उत्तरसाक्षरता अभियान के अंतर्गत छुआछूत और उपेक्षित-जन के विकास की कहानी...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अब न होगा कोई अछूत
सुबह का समय था। हवा ठण्डी-ठण्डी चल रही थी। नवंबर का महीना था। कुनकुनी
सरदी का अहसास हो रहा था।
सुना था कि वहां महात्मा गांधी आने वाले हैं। सामने करौल बाग था। वहीं महात्मा गांधी प्रवचन करेंगे।
शंकर को उस जगह की सफाई का काम दिया गया था।
शंकर के एक छोटे बेटे ने जिद की कि वह उनके साथ चलेगा।
शंकर की मां काली ने कहा, ‘‘क्यों नहीं मुन्ना को साथ ले जाते। वह भी गांधीजी को देख लेगा।।’’
‘‘तुझे तो पता ही है कि गांधीजी बहुत बड़े आदमी हैं। ऊंची जाति के हैं। वहां हम जैसी नीच जाति वालों का क्या काम ?’’ शंकर ने समझाया। ‘‘तू तो नाम का शंकर रहा।...अरे, तेरा नाम शंकर जानकर सब तुझे ऊँची जाति का समझेंगे।’’ उसकी मां काली ने समझाया।
इसी समय शंकर की घरवाली सांवली आ गई । वह बोली, ‘‘रहने दे मां, रहने दे,। जे बहुत जिद्दी हैं। खुद तो महात्मा गांधी को देखने का पुण्य ले लेंगे पर अपने बेटे को उससे बराबर अछूत बनाए रखेंगे।’’
‘‘क्यों रे शंकर, तू किसी की कुछ सुनता ही नहीं है।...क्या कान में रूई ठूंस लेता है काम की बात के मौके पर।’’ काली तेज स्वर में कहती। सांवली मुंह बनाकर अंदर जाते हुए गरज कर कहती, ‘‘बेटे, तू मत जाना। ...मैं तुझे गांधी बाबा के दर्शन कराऊंगी।’’
काली तेज स्वर में कहती ‘‘सुन रहा है शंकरिया, चुपचाप मेरे लाड़ले को साथ ले जा, यह मेरा हुक्म है।’’
शंकर सिर झुकाए खड़ा रह गया। फिऱ कुछ खिसियाता हुआ बोला, ‘‘ओ भागवान्, जरा अपने लाड़ले का हाथ-मुँह तो धो दे।’’
सांवली अंदर से बाहर आती। आनन-फानन में अपने लाड़ले गणेश को तैयार कर देती।
सुना था कि वहां महात्मा गांधी आने वाले हैं। सामने करौल बाग था। वहीं महात्मा गांधी प्रवचन करेंगे।
शंकर को उस जगह की सफाई का काम दिया गया था।
शंकर के एक छोटे बेटे ने जिद की कि वह उनके साथ चलेगा।
शंकर की मां काली ने कहा, ‘‘क्यों नहीं मुन्ना को साथ ले जाते। वह भी गांधीजी को देख लेगा।।’’
‘‘तुझे तो पता ही है कि गांधीजी बहुत बड़े आदमी हैं। ऊंची जाति के हैं। वहां हम जैसी नीच जाति वालों का क्या काम ?’’ शंकर ने समझाया। ‘‘तू तो नाम का शंकर रहा।...अरे, तेरा नाम शंकर जानकर सब तुझे ऊँची जाति का समझेंगे।’’ उसकी मां काली ने समझाया।
इसी समय शंकर की घरवाली सांवली आ गई । वह बोली, ‘‘रहने दे मां, रहने दे,। जे बहुत जिद्दी हैं। खुद तो महात्मा गांधी को देखने का पुण्य ले लेंगे पर अपने बेटे को उससे बराबर अछूत बनाए रखेंगे।’’
‘‘क्यों रे शंकर, तू किसी की कुछ सुनता ही नहीं है।...क्या कान में रूई ठूंस लेता है काम की बात के मौके पर।’’ काली तेज स्वर में कहती। सांवली मुंह बनाकर अंदर जाते हुए गरज कर कहती, ‘‘बेटे, तू मत जाना। ...मैं तुझे गांधी बाबा के दर्शन कराऊंगी।’’
काली तेज स्वर में कहती ‘‘सुन रहा है शंकरिया, चुपचाप मेरे लाड़ले को साथ ले जा, यह मेरा हुक्म है।’’
शंकर सिर झुकाए खड़ा रह गया। फिऱ कुछ खिसियाता हुआ बोला, ‘‘ओ भागवान्, जरा अपने लाड़ले का हाथ-मुँह तो धो दे।’’
सांवली अंदर से बाहर आती। आनन-फानन में अपने लाड़ले गणेश को तैयार कर देती।
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